परीक्षा से एक दिन पहले क्या करें, क्या नहीं? क्लिक कर जानिए

परीक्षा से एक दिन पहले क्या करें, क्या नहीं?

गौरतलब है कि प्रतियोगी परीक्षा में दोनों प्रश्नपत्रों के लिये दो-दो घंटे की समयावधियों में अपनाई गई रणनीति की सफलता अन्य बातों के साथ-साथ परीक्षा से एक दिन पहले किये जाने वाले दैनंदिन क्रियाकलापों पर भी निर्भर करती है।

★अक्सर ऐसा देखा गया है कि अधिकांश छात्रों के लिये परीक्षा से पिछली रात बड़ी कष्टकारी एवं बेचैन मनोदशा से भरी होती है। नतीजतन, परीक्षार्थी उस रात में ठीक तरह से नींद भी नहीं ले पाते हैं। इसका दुष्प्रभाव उनकी ‘एग्ज़ाम परफॉर्मेंस’ पर पड़ता है।

★परीक्षा से एक दिन पूर्व अधिकांश छात्रों की मनोदशा तनावपूर्ण रहती है। कई बार अनावश्यक सोच-विचार के कारण वे इतना तनाव ले लेते हैं कि उन्हें कई तरह की जटिल शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे- ध्यान केंद्रित न कर पाना, स्मृति ह्रास, गलत निर्णयन, आत्यंतिक भावदशा परिवर्तन, व्याकुलता, अत्यधिक चिंतित होना, भय, अवसाद, अनिद्रा, भूख न लगना, सर-दर्द या पेट खराब होना आदि। दबाव के ये लक्षण शारीरिक, संवेगात्मक तथा व्यवहारात्मक होते हैं। यदि इनका निराकरण न किया जाए तो गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं।

★परीक्षा को लेकर अत्यधिक चिंतित होना तो लगभग हरेक परीक्षार्थी में देखा जाता है लेकिन उस चिंता के वशीभूत होकर अपने परीक्षा प्रदर्शन को कम या खराब कर लेना सफल छात्रों का लक्षण कदापि नहीं हो सकता। समस्या है तो उसका समाधान भी है। दबाव से निपटने तथा परीक्षा में सफलता प्राप्त करने के लिये आशावादी चिंतन, सकारात्मक अभिवृत्ति, संतुलित आहार, व्यायाम, योग तथा पूरी नींद लेना आदि ज़रूरी हैं।

★छात्रों को विशेष सलाह दी जाती है कि परीक्षा से एक दिन पहले उन्हें अनावश्यक तनाव के बजाय सकारात्मक सोच तथा आशावादी चिंतन पर ही फोकस करना चाहिये।
व्यर्थ की बातों के बारे में सोचकर परेशान होने के बजाय परीक्षार्थियों को यह सोचना चाहिये कि जिस परीक्षा की तैयारी उन्होंने इतनी शिद्दत से की है, उसे एक दिन के नकारात्मक रवैये के कारण गँवाया न जाए। इसलिये, इस एक दिन के लिये छात्रों को अपनी संपूर्ण ऊर्जा स्वयं को पॉज़िटिव बनाए रखने के लिये लगानी चाहिये।

★सभी छात्रों के लिये सकारात्मकता का कारक भले ही भिन्न हो किंतु उनका लक्ष्य एक समान है। अतः अनावश्यक बोझ, तनाव या चिंता से अभ्यर्थियों को सर्वथा बचना चाहिये।

★परीक्षा से एक दिन पहले छात्रों को बहुत ज़्यादा पढ़ाई भी नहीं करनी चाहिये। प्रतियोगी परीक्षा के लिये पढ़ाई की कोई सीमा नहीं है। अतः कोई भी पढ़ाई इस लिहाज से अंतिम या परिपूर्ण नहीं हो सकती। इसलिये छात्रों को समझना चाहिये कि परीक्षा से एक दिन पहले अत्यधिक पढ़ाई करने की बजाय अगले दिन होने वाली परीक्षा के 2 घंटे में क्या रणनीति हो, उस पर गंभीरता से विचार करें तथा परीक्षोपयोगी आवश्यकता की हर वस्तु को व्यवस्थित करें। अतः छात्रों को सलाह दी जाती है कि परीक्षा के एक दिन पहले 5 से 6 बजे तक पढ़ाई बंद कर दें।

★दिन की शेष अवधि में परीक्षार्थियों को पूर्णतः ‘रिलैक्स्ड मूड’ में रहते हुए परीक्षा भवन की रणनीति बनानी चाहिये। इस दौरान छात्रों द्वारा अपने पसंदीदा संगीत, फिल्म, खेल या अन्य अभिरुचियों में समय व्यतीत करना श्रेयस्कर माना जा सकता है।
ये सारी गतिविधियाँ छात्रों के तनाव को कम करने में कारगर साबित हो सकती हैं। साथ ही, छात्रों को खाने-पीने में वैसी चीज़ों का सेवन नहीं करना चाहिये जिनसे उनका स्वास्थ्य बिगड़ जाए। इसके अलावा, ऐसे ईर्ष्यालु मित्रों से बात भी नहीं करनी चाहिये जो ऊल-जुलूल प्रश्न पूछकर आपके आत्मविश्वास को डिगा दें। इन बातों से बचते हुए छात्रों को आंतरिक मनन के ज़रिये सकारात्मक रहना ज़रूरी है।

★अधिकांश छात्रों के लिये परीक्षा-तिथि की पूर्व-रात्रि अत्यंत सोच-विचार और अनिद्रा भरी होती है। तनाव का ज़ोर इतना गहरा होता है कि छात्र किंचित अर्द्धनिद्रा जैसी स्थिति में पूरी रात काट देते हैं और फिर सुबह वे अपने को तरोताजा महसूस नहीं करते हैं।
दरअसल, 6-8 घंटे की स्वस्थ नींद के लिये हमारे मस्तिष्क में पर्याप्त मात्रा में ‘#मेलाटोनिन’ नामक रसायन का होना आवश्यक है। परंतु परीक्षा-पूर्व की रात्रि में तनाव बढ़ाने वाले मनोरसायन ‘#कार्टिसॉल’ की मात्रा काफी बढ़ जाने से ‘मेलाटोनिन’ की कमी तथा उत्साह व आत्मविश्वास पैदा करने वाले मनोरसायन ‘#सेराटोनिन’ का भी स्तर काफी कम हो जाता है। इसे ‘पेपर-पैरासोमनिया’ कहा जाता है। ‘पेपर-पैरासोमनिया’ से ग्रसित छात्र अगले दिन के पेपर के लिये न तो तरोताज़ा महसूस करते हैं, न ही वे आत्मविश्वास से भरे होते हैं। बल्कि पूरी रात की क्षीण हुई मानसिक ऊर्जा की वजह से उन्हें पढ़ी हुई चीज़ें भी परीक्षा भवन में भूलती हु
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अग्रीम शुभकामनाओं के साथ__रवि पटेल


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